Virat Kohli VS Yuvraj Singh-युवराज सिंह कैंसर को हराकर लौटे थे, लेकिन विराट ने टीम में नहीं दी रियायत, कैरियर ‘बर्बाद’ हुआ तो हो गई ‘दुश्मनी’
Cricketer Yuvraj Singh- 6 गेंद में 6 छक्के मारने वाले दुनिया में गिने चुने ही क्रिकेटर हैं, युवराज सिंह ( Yuvraj Singh) उसमें से एक हैं। भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket) की शान रहे धमाकेदार ऑलराउंडर युवराज सिंह कुछ दिन टीम इंडिया (Team India) में और खेलना चाहते थे, लेकिन टीम में फिटनेस में उनको रियायत नहीं मिली। क्रिकेट ज़ोन हिन्दी (cricketzonehindi.com) में आज बात युवराज सिंह और विराट कोहली (Yuvraj Singh vs Virat Kohli) के बीच पैदा हुई गलतफहमी की।
युवराज सिंह (Yuvraj Singh) —एक ऐसा नाम जो भारतीय क्रिकेट के सुनहरे पन्नों में हमेशा चमकता रहेगा। एक ऐसा खिलाड़ी जिसने अपनी बल्लेबाजी से न सिर्फ मैदान पर धमाल मचाया, बल्कि जिंदगी की सबसे बड़ी जंग—कैंसर—को हराकर भी दुनिया को दिखा दिया कि हिम्मत क्या होती है। लेकिन क्या हुआ जब वो इस बीमारी से लड़कर 2017 में वापस मैदान पर लौटे? क्या उनकी वापसी को वो सम्मान और मौका मिला, जिसके वो हकदार थे? पूर्व क्रिकेटर रॉबिन उथप्पा ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने क्रिकेट फैंस के बीच बहस छेड़ दी है। उथप्पा का दावा है कि विराट कोहली की सख्त कप्तानी ने युवराज के करियर को समय से पहले खत्म कर दिया।
क्रिकेट ज़ोन ने इन सभी टीमों के धाकड़ बल्लेबाजों, गेंदबाजों, उनकी खूबियों, खामियों और रणनीतियों की समीक्षा की और पाया कि ये पांच टीमें पदक की दावेदार हैं और 300 रनों का पहाड़ खड़ा करने की ताकत रखती हैं। आइये एक एक करके सबकी ख़बियों और खामियों पर नज़र डालते हैं।
क्रिकेट का हीरो और कैंसर का फाइटर

सबसे पहले बात करते हैं युवराज की। 2007 का टी20 वर्ल्ड कप हो या 2011 का वनडे वर्ल्ड कप—युवराज वो नाम था, जिसके बिना भारत की जीत की कहानी अधूरी थी। स्टुअर्ट ब्रॉड को एक ओवर में छह छक्के मारने से लेकर 2011 वर्ल्ड कप में ऑलराउंड प्रदर्शन तक, युवराज ने हर बार दिखाया कि वे बड़े मैचों के क्रिकेटर हैं। लेकिन 2011 वर्ल्ड कप के बाद उनकी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्हें फेफड़ों का कैंसर (Lung cancer) डायग्नोस हुआ। ये खबर सुनकर पूरा देश सन्न रह गया। फिर भी, युवी ( yuvi) ने हार नहीं मानी। अमेरिका में इलाज करवाया, कीमोथेरेपी ली और 2012 में मैदान पर वापस लौट आए। ये किसी चमत्कार से कम नहीं था।
वापसी के बाद युवराज ने इंग्लैंड ( England) के खिलाफ वनडे में शतक ( century) भी जड़ा। फैंस को लगा कि अब वो फिर से पुराने रंग में लौट आएंगे। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब उनकी फिटनेस पर सवाल उठने लगे। टीम में जगह बनाना मुश्किल हो गया, और धीरे-धीरे उनका करियर ढलान पर चला गया। 2017 के चैंपियंस ट्रॉफी के बाद तो उन्हें पूरी तरह बाहर कर दिया गया। फिर 2019 में युवराज ने इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह दिया। सवाल ये है कि क्या सचमुच युवराज का करियर अपनी मर्जी से खत्म हुआ, या इसमें किसी और का हाथ था?
रॉबिन उथप्पा का सनसनीखेज दावा
अब आते हैं रॉबिन उथप्पा ( robin Uthappa) के बयान पर। उथप्पा, जो खुद भारतीय टीम का हिस्सा रह चुके हैं, ने एक डिजिटल इंटरव्यू में दावा किया था कि विराट कोहली की कप्तानी ने युवराज के करियर को समय से पहले ही खत्म कर दिया।
उनके मुताबिक, जब युवराज कैंसर से ठीक होकर लौटे, तो उन्हें टीम में वापसी के लिए फिटनेस टेस्ट पास करना पड़ा। युवराज ने इसमें थोड़ी ढील मांगी थी—बस दो नंबर की। वजह साफ थी, कैंसर के बाद उनके फेफड़ों की क्षमता पहले जैसी नहीं रही। लेकिन उथप्पा का कहना है कि विराट ने उनकी इस गुजारिश को ठुकरा दिया।
उथप्पा ने आगे बताया कि युवराज ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने टेस्ट पास किया और टीम में जगह बनाई। लेकिन 2017 की चैंपियंस ट्रॉफी में उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। इसके बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया और फिर कभी वापस नहीं लिया गया। उथप्पा का मानना है कि विराट की सख्ती और ‘मेरी चलेगी वरना हटो’ वाला रवैया युवराज के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। वो कहते हैं, “युवी ने दो वर्ल्ड कप जितवाए, कैंसर जैसी बीमारी को हराया, फिर भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे।”
विराट कोहली ने क्या ‘गलत’ किया ?

अब बात करते हैं विराट कोहली ( Kind Kohli) की। विराट जब कप्तान बने, तो उन्होंने भारतीय टीम में एक नया दौर शुरू किया। फिटनेस पर उनका जोर इतना था कि इसे टीम का बेसिक नियम बना दिया गया। ‘यो-यो’ टेस्ट पास करना हर खिलाड़ी के लिए जरूरी कर दिया गया। विराट का मानना था कि इंडियन क्रिकेट का लेवल ऊंचा रखने के लिए फिटनेस से समझौता नहीं किया जा सकता। उनकी कप्तानी में टीम इंडिया की फील्डिंग और स्टैमिना में जबरदस्त सुधार भी देखने को मिला।
विराट के इस सख्त रवैये की तारीफ भी हुई, लेकिन कई बार इसे लेकर सवाल भी उठे। खासकर तब, जब अनुभवी खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने गया। युवराज के मामले में भी यही हुआ। उथप्पा का कहना है कि विराट ने युवराज की खास परिस्थितियों को नजरअंदाज कर दिया। लेकिन अगर विराट के नजरिए से देखें, तो शायद वो टीम के लिए एक सख्त स्टैंडर्ड सेट करना चाहते थे, जिसमें कोई अपरिहार्य (exception) न हो। सवाल ये है कि क्या इस सख्ती में युवराज जैसे लीजेंड के साथ नाइंसाफी हुई?
युवराज की अपनी बात
हालांकि युवराज ने खुद इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा। हां, एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने जरूर जिक्र किया था कि 2017 चैंपियंस ट्रॉफी के बाद उन्हें अचानक बाहर कर दिया गया, जो उनके लिए चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “मैंने दो मैचों में ‘मैन ऑफ द मैच’ रहा था, फिर भी मुझे टीम से हटा दिया गया। अचानक 36 की उम्र में यो-यो टेस्ट की बात आई। मैंने वो पास भी किया, फिर भी मुझे डोमेस्टिक क्रिकेट खेलने को कहा गया। शायद टीम मैनेजमेंट को लगा कि मैं अब फिट नहीं रह सकता।”
युवराज ने ये भी कहा कि वो विराट को परेशान नहीं करते, क्योंकि वो बहुत बिजी रहते हैं। इससे साफ है कि युवराज के मन में कोई कड़वाहट नहीं है, लेकिन उनकी बातों से ये जरूर लगता है कि उन्हें टीम से बाहर करने का फैसला उनके लिए हैरान करने वाला था।
क्या हुआ उस वक्त?

चलिए, थोड़ा पीछे चलते हैं और देखते हैं कि 2017 में क्या हुआ था। चैंपियंस ट्रॉफी में युवराज का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। टूर्नामेंट में उन्होंने 5 मैच खेले और सिर्फ 53 रन बनाए। इसके बाद वेस्टइंडीज दौरे पर भी वो ज्यादा कमाल नहीं दिखा पाए। फिर उन्हें टीम से ड्रॉप कर दिया गया। उस वक्त विराट कोहली कप्तान थे और रवि शास्त्री कोच। टीम मैनेजमेंट का फोकस युवा खिलाड़ियों पर शिफ्ट हो रहा था। शायद इसी वजह से युवराज को दोबारा मौका नहीं मिला।
लेकिन उथप्पा का सवाल ये है कि क्या एक टूर्नामेंट के खराब प्रदर्शन के आधार पर युवराज जैसे खिलाड़ी को पूरी तरह बाहर करना सही था? खासकर तब, जब वो कैंसर से उबरकर लौटे थे और पहले भी अपनी काबिलियत साबित कर चुके थे।
कोहली की कप्तानी: सख्त या नाइंसाफ?
विराट की कप्तानी को लेकर दो राय हैं। एक तरफ वो लोग हैं, जो उनकी सख्ती की तारीफ करते हैं। उनके दौर में टीम इंडिया फिटनेस के मामले में टॉप पर पहुंची। दूसरी तरफ कुछ लोग मानते हैं कि उनकी सख्ती कई खिलाड़ियों के लिए भारी पड़ी। उथप्पा ने विराट की तुलना रोहित शर्मा से भी की। उनके मुताबिक, रोहित का तरीका ‘सबको साथ लेकर चलने’ वाला है, जबकि विराट का स्टाइल ‘मेरे नियम मानो या बाहर जाओ’ वाला था।
युवराज के मामले में ये सख्ती साफ दिखती है। अगर उन्हें फिटनेस टेस्ट में थोड़ी छूट मिलती, तो शायद वो टीम में टिक पाते। लेकिन विराट का मानना था कि नियम सबके लिए बराबर होने चाहिए। सवाल ये है कि क्या एक ऐसे खिलाड़ी को, जिसने कैंसर को हराया हो, थोड़ा स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिलना चाहिए था?

फैंस का क्या कहना है?

इस पूरे मामले पर फैंस की राय भी बंटी हुई है। कुछ लोग उथप्पा की बात से सहमत हैं। उनका कहना है कि युवराज ने देश के लिए इतना कुछ किया, फिर भी उनके साथ ऐसा सलूक हुआ। एक फैन ने लिखा, “युवी को सम्मान मिलना चाहिए था। कैंसर से लड़कर वापस आना कोई छोटी बात नहीं।” वहीं, कुछ लोग विराट का सपोर्ट करते हैं। उनका कहना है कि फिटनेस का नियम सबके लिए एक जैसा होना चाहिए, वरना टीम का अनुशासन बिगड़ जाता।
क्या ये सचमुच करियर का अंत था?

अब सवाल ये है कि क्या सचमुच विराट की सख्ती ने युवराज का करियर बर्बाद कर दिया? अगर गौर से देखें, तो युवराज उस वक्त 36-37 साल के थे। क्रिकेट में इस उम्र में फॉर्म और फिटनेस बनाए रखना आसान नहीं होता। कैंसर के बाद उनकी बॉडी पहले जैसी नहीं रही, ये बात वो खुद भी मानते थे। ऐसे में शायद उनका करियर अपने आखिरी पड़ाव पर था। लेकिन अगर उन्हें थोड़ा वक्त और सपोर्ट मिलता, तो शायद वो कुछ और साल खेल पाते।
विराट की सख्ती ने इस प्रक्रिया को तेज कर दिया, ये कहना गलत नहीं होगा। लेकिन ये कहना कि उनका करियर पूरी तरह ‘बर्बाद’ हो गया, शायद थोड़ा बढ़ा-चढ़ाकर होगा। युवराज ने आईपीएल में 2019 तक खेला और फिर सम्मान के साथ रिटायरमेंट लिया।
सच्चाई क्या है?

इस पूरे मामले का सच शायद कभी सामने न आए। विराट ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया है, और युवराज भी ज्यादा कुछ नहीं बोलते। उथप्पा का दावा अपनी जगह सही हो सकता है, लेकिन ये भी सच है कि क्रिकेट में फिटनेस और फॉर्म का दबाव हर खिलाड़ी पर होता है। युवराज एक लीजेंड थे, इसमें कोई शक नहीं। कैंसर से उनकी लड़ाई प्रेरणा की मिसाल है। लेकिन खेल की दुनिया में भावनाओं से ज्यादा नियम चलते हैं।
विराट ने जो किया, वो टीम के लिए सही लगा होगा। लेकिन क्या युवराज जैसे खिलाड़ी के लिए थोड़ी नरमी बरती जा सकती थी? ये सवाल हमेशा बना रहेगा। आपके हिसाब से क्या सही था—विराट की सख्ती या युवराज को थोड़ा मौका देना? अपनी राय कॉमेन्ट बॉक्स के जरिए रखिए।
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